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dastan no 11

* ﷽✨✨✨✨ ﷽✨✨✨✨ *
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 * 3 "कहानी नंबर _11 *
 * 3 "एक व्यक्ति जो नमाज़ छोड़ता है उसे काफिर कहा जाता है! , लेकिन एक व्यभिचारी या शराबी  काफिर क्यों नहीं है?"
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 * 1 "एक दिन, इमाम सादिक (अ.स.) के साथियों में  . मसाअद. "आप के पास आये  और अनुरोध किया कि   मौला वह क्या कारण है कि नमाज़ छोड़ने वाले को  काफिर कहा जाता है. जबकि  एक व्यभिचारी या शराबी को नहीं. इमाम (अ.) ने कहा: "क्योंकि एक व्यभिचारी व्यभिचार करता है या मादक पेय पीता है, वह इसका आनंद लेता है (यह हराम है) खोदा को स्वीकार्य नहीं कि जब कोई व्यक्ति जो नमाज़ को छोड़ना चाहता है, उसे किसी भी प्रकार का आनंद नहीं मिलता है, तो वह प्रार्थना को "ख़फिफ़, यानि हल्का और मामूली मानता है, इसलिए वह नमाज़ को छोड़ देता है और जब वह नमाज़ को अपमानित  यानि हल्कापन की भावना पैदा होती है, तो यह अविश्वास पैदा करता है, यही वजह है कि शराबी को काफिर  नहीं कहा जाता है, जबकि नमाज़ छोड़ने वाले को काफिर कहा जाता है। *
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 * ३ "सन्दर्भ कथाएँ सिद्धांत, काफ़ी, मोहम्मद मोहम्मदी अददादी, पी, ३ *
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*✨✨✨✨✨ ﷽✨✨✨✨*
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*☑11"*
*📖"كيوں تارک الصلاہ ( نماز ترک کرنے والے) كو كافر كہا گيا ہے ليكن زانى يا شراب خور كو كافر نہيں كہا گيا؟"*
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*✍🏻"ايک دن امام صادق عليہ السلام كے صحابى ’’مسعدہ‘‘ امام(؏) كے پاس تشريف لاۓ اور عرض كى يا مولا(؏) كيا وجہ ہے كہ تارک الصلاہ كو كافر كہا گيا ہے جبكہ زانى اور شراب خور يا اس قسم كے گناہ كرنے والے كو كافر نہيں كہا گيا؟ امام(؏) نے فرمايا!: كيونكہ ايک زنا كار جب زنا كرتا ہے يا شراب خور شراب پيتا ہے تو وہ اس سے لذت اٹھاتا ہے اور وہ يہ گناہ شديد شہوت جنسى كى بنا پر انجام ديتا ہے جبكہ نماز ترک كرنے والے كو نماز ترک كرنے سے كسى قسم كى لذت نہيں ملتى بكلہ وہ نماز كو ’’ خفيف يعنى ہلكا و معمولى چيز‘‘ سمجمھتا ہے اس لئے وہ نماز كو ترک كرديتا ہے۔ اور جب بھى نماز كو خفيف و ہلكا سمجھنے كا احساس پيدا ہوتا ہے تو يہ احساس كفر پيدا كرتا ہے،۔ يہى وجہ ہے كہ تارک الصلاة كو كافر كہا گيا ہے جبكہ شراب خور يا زانى كو كافر نہيں كہا گيا۔*
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*📚"حوالہ داستانهاى اصول كافى،محمد محمدى اشتہاردى، ص، ۵۰۹*
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*📿امام_زمانہ (عج) کے ظھور  میں  تعجیل  کے لئے صلوات___ألـلَّـھُــــــمَــ ؏َـجــــــــــِّـلْ لِوَلــــــیِـڪْ ألــــــــــْـفـــــَـرَج!📿*
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अमाले शबे कद्र हिंदी,amaal e shab e qadr in hindi,

Amaal-e-Shab-e-Qadr in Hindi* उन्नीसवी रात यह शबे क़द्र की पहली रात है और शबे क़द्र के बारे में कहा गया है कि यह वह रात है जो पूरे साल की रातों से अधिक महत्व और फ़ज़ीलत रखती है, और इसमें किया गया अमल हज़ार महीनों के अमल से बेहतर है शबे क़द्र में साल भर की क़िस्मत लिखी जाती है और इसी रात में फ़रिश्ते और मलाएका नाज़िल होते हैं और इमाम ज़माना (अ) की ख़िदमत में पहुंचते हैं और जिसकी क़िस्मत में जो कुछ लिखा गया होता है उसको इमाम ज़माना (अ) के सामने पेश करते हैं। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि इस रात में पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत करे और दुआएं पढ़ता रहे और अपने आने वाले साल को बेहतर बनाने के लिए अल्लाह से दुआ करे। शबे क़द्र के आमाल दो प्रकार के हैं: एक वह आमाल हैं जो हर रात में किये जाते हैं जिनको मुशतरक आमाल कहा जाता है और दूसरे वह आमाल हैं जो हर रात के विशेष आमाल है जिन्हें मख़सूस आमाल कहा जाता है। वह आमाल जो हर रात में किये जाते हैं 1⃣ *ग़ुस्ल* (सूरज के डूबते समय किया जाए और बेहतर है कि मग़रिब व इशा की नमाज़ को इसी ग़ुस्ल के साथ पढ़ा जाय) 2⃣ दो रकअत नमाज़, जिसकी हर रकअत में एक बार सूरह *

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