( 786) **अहलेबैत (अस)का पैरोकार कौन?* * एक व्यक्ति पैगंबर की खिदमत में आया , और कहा कि एक शख्स अपने पड़ोसी की नामूस पर बुरी नज़र डालना है। और अगर उसके लिए अपने पड़ोसी के घर में प्रवेश करना संभव होता, तो वह उसको भी करता ।और इज्जत की भी परवाह नहीं करता * यह सुनकर, रसूल (स,) बहुत गजबनाक हो गए और कहा: उसे बताओ कि अल्लाह का रसूल (स)तुम्हें बुला रहा है। फिर एक दूसरे व्यक्ति ने कहा: हे अल्लाह के पैगंबर, वह आपका पैरोकार है और वह उन लोगों में से एक है जो आपकी विलायत और हजरत अली की विलायत को कोबूल करते हैं, और आपके दुश्मनों से बेजार भी हैं। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: उसे हमारा पैरोकार मत कहो, क्योंकि यह गलत है, क्योंकि हमारे पैरोकार वे हैं, जिनके कर्म हमारे कर्मों के समान हैं, लेकिन तुम्हारे अनुसार उनका किरदार हमारे जैसा नहीं है। * इसलिए अजीजो हमें चाहिए कि हम अपने किरदार को इमाम जैसा बनाए ना कि सिर्फ दिखावे के लिए हुसैनी बनने का दावा करें तो ऐसे हुसैनी को ना तो हुसैन अस,और ना दूसरे मासूम ना ही खोदा पसंद करता है। Please subscribe my YouTube channel deen e haq network * • ⊰⊰✿✿⊱⊱
माहे मोहर्रम – माहे अज़ा पढ़ने का समय: 3 मिनट दीगर मज़ाहिब अपने साल का आगाज़ खुशी के साथ मनाते हैं। एक दुसरे को नए साल की मुबारकबाद देते हैं, नये कपड़े वगै़रा पहनते हैं, वगै़रा वगै़रा । मगर मुसलमानों में ये रिवाज नही है । इसकी क्या वजह है? इस बात से बहस नही के क्या इसलामी साल का पहला महीना मुहर्रमुल हराम है या ये कि साल का पहला महीना रबीउल अव्वल है। माहे मुहर्रम से साल का आगाज़ होता हो या न होता हो मगर ये तो तए है के ये महीना अहलेबैते पैग़म्बर के लिये ग़म का महीना है। इस महीने में वाक़ेऐ करबला रूनूमा हुआ जिस की याद अहलेबैते अतहार और उनके शियों के दिल को ग़म से भर देती है। एक मोतबर रिवायत जो शियों की कुतुबे अहादीस में नक़ल हुई है, में मिलता है, जिस में इमाम रज़ा (अ.स.) फ़रमाते हैं: ‘‘माहे मुहर्रम के शुरू होते ही कोई मेरे वालिद को मुसकुराता हुआ नही पा सकता था और आशूरा के दिल तक आपके चेहरे पर अन्दोह और परेशानी का ग़लबा होता था और आशूर का दिन आपके लिये मुसीबत और रोने का दिन होता था।’’ आप (अ.स.) फ़रमाते थे: ‘‘आज वो दिन है कि जिस दिन हुसैन (अ.स.) शहीद हुये हैं।’’ इस रिवायत में इमाम रज़ा (अ.स.) ने