इमाम ज़माना अ.स. और अज़ादार की ज़िम्मेदारी
विलायत पोर्टलः हक़ीक़ी अज़ादार अच्छी तरह समझता है कि अहले बैत अ.स. क लिए अज़ादारी केवल अल्लाह की ओर से दी गई ज़िम्मेदारियों में से एक है, हक़ीक़ी अज़ादार की निगाह में असली ज़िम्मेदारी कर्बला के मक़सद और उसके पैग़ाम पर अमल करना है, और अपनी ज़िम्मेदारी पर अलम करना ही कर्बला वालों का सबसे बड़ा सबक़ सभी हक़ीक़ी अज़ादारों के लिए है, वह हमेशा इमाम ज़माना अ.स. के सामने अपनी ज़िम्मेदारियों का समझता है।
सच्चा अज़ादार जानता है कि उसको अल्लाह की अदालत में हाज़िर हो कर इमाम ज़माना अ.स. को ले कर उसकी क्या ज़िम्मेदारी है इसका जवाब देना है, वह अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए किसी साथी, किसी टीम या किसी अंजुमन का इंतेज़ार नहीं करता, वह अकेला ही इमाम अ.स. की तंहाई, ग़ैबत और ज़ुहूर की तड़प में मदद करता है, वह कर्बला के शहीदों को नज़र में रखते हुए केवल इमाम अ.स. के हुक्म पर अमल करता है, न ही तादाद को देखता और न ही अंजाम की परवाह करता बल्कि उसकी निगाह में केवल अपनी ज़िम्मेदारी होती है, उसे यह भी फ़िक्र नहीं होती कि कोई उसका समर्थन करेगा या नहीं, जैसे अब्दुल्लाह इब्ने हसन अ.स. ने कर्बला में अपने चचा इमाम हुसैन अ.स. को ख़ून में लतपथ ज़मीन पर और आपके चारो ओर दुश्मन की फ़ौज को देखा तो उसी समय मैदान में आ गए, और फिर जैसे ही इबेने काब नामी दुश्मन इमाम हुसैन अ.स. पर वार करना चाह रहा था अब्दुल्लाह ने अपने हाथों को आगे कर दिया ताकि अपने ज़माने के इमाम अ.स. पर किए गए वार को रोक सकें, हाथ कटने के बाद वह अपने चचा की गोद में गिर गए, उसके बाद हुर्मुला नामी दुश्मन के सिपाही ने तीर मार कर शहीद कर दिया। (बिहारुल अनवार, अल्लामा मजलिसी, जिल्द 45, पेज 53)
हक़ीक़ी अज़ादार और इमाम अ.स. का दिल से इंतेज़ार करने वाला चाहता है कि अगर उसे अपनी पैदाइश का मक़सद और कमाल तक पहुंचना है तो उसे अल्लाह की इस नसीहत पर ज़रूर अमल करेगा, अल्लाह का इरशाद है कि ऐ मेरे रसूल स.अ. कह दीजिए कि मैं तुमको एक जुमले में नसीहत करता हूं और वह यह कि तुम केवल अल्लाह की राह पर दो दो करके या अकेले तल पड़ो। (सूरए सबा, आयत 46)
इमाम ख़ुमैनी र.ह. इस अल्लाह नसीहत के बारे में फ़रमाते हैं कि, यह अल्लाह की बेहतरीन नसीहतों में से है, इंसान के लिए यही अकेला रास्ता है जो उसकी यहां की ज़िंदगी और मरने की बाद की ज़िंदगी को संवार सकता है, अल्लाह के लिए उसके रास्ते पर निकल जाना ही हज़रत इब्राहीम अ.स. को ख़लील बनाता है।
अल्लाह के लिए उसके रास्ते पर निकल जाना ही हज़रत मूसा अ.स. को यह मोजिज़ा देता है कि उनके एक असा से फ़िरऔन अपने लश्कर, ताज और तख़्त समेत नाबूद हो जाता है, अल्लाह के रास्ते पर उसी के लिए निकल पड़ना ही है जिसने पैग़म्बर स.अ. को जेहालत के दौर की सालों से चली आ रही हर तरह की रस्मों और उनके अक़ाएद पर कामयाबी दी, और अल्लाह के घर से बुतों को निकाल कर उसकी जगह तौहीद और तक़वा को जगह दी, और पैग़म्बर को क़ाबा और क़ौसैन की मंज़िल तक पहुंचाया।
हमारे घमंड और अल्लाह के लिए उसके रास्ते पर न चलने से ही आज पूरी दुनिया हमारे विरुध्द जमा हो गई है, और इल्लामी देश दूसरों की ग़ुलामी कर रहे हैं, अल्लाह की नसीहत को पढ़ो और जिस रास्ते पर जिस तरह चलने के लिए कहा है वैसे ही चलो, व्यक्तिगत फ़ायदे को न सोंच कर सब के फ़ायदे को ध्यान में रखो, ताकि दुनिया और आख़ेरत दोनों जगह कामयाब रहो, और एक शरीफ़ ज़िंदगी जी सको। (सहीफ़-ए-नूर, इमाम ख़ुमैनी र.ह., जिल्द 1, पेज 3)
यह हमारा घमंड, तकब्बुर और अल्लाह के लिए उसके रास्ते पर न चलना ही है जिसकी वजह से इमाम ज़माना अ.स. तंहाई के आलम में ग़ैबत में हैं, और साम्राज्यवादी ताक़तें हम पर हाकिम हुई चली जा रही हैं, जैसाकि ख़ुद इमाम अ.स. का फ़रमान है कि, अगर हमारे शिया वफ़ादार और हमदर्द होते तो हमारे ज़ुहूर में इतनी देर न होती। (बिहारुल अनवार, जिल्द 53, पेज 177)
हमारे लिए सबसे बेहतरीन रास्ता वही है जो इमाम ख़ुमैनी र.ह. ने बयान किया कि सबको अल्लाह की इस नसीहत को पढ़ना और अमल करना चाहिए और अपने निजी फ़ायदे को छोड़ कर इमाम हुसैन अ.स. के क़ातिलों से इंतेक़ाम लेने वाले वक़्त के इमाम अ.स. से अपनी वफ़ादारी को मज़बूत करना चाहिए, और इमाम अ.स. के ज़ुहूर की रुकावटों को ख़त्म करने और दीन के दुश्मनों से लड़ने के लिए केवल अल्लाह के लिए उसके बताए हुए रास्ते पर चलना चाहिए, हमें दुनिया की चमक और निजी फ़ायदों को किनारे रखते हुए इमाम के ज़ुहूर के लिए दिल और जान से कोशिश करें।
ज़ियारते आशूरा में अहले बैत अ.स. पर ज़ुल्म ढ़हाने वालों, उनके हक़ को छीनने वालों और उन पर ज़ुल्म की बुनियाद डालने वालों से अपनी दूरी के ऐलान के बाद इन ज़ालिमों के दोस्त और इनसे मिलने वालों से भी दूरी का ऐलान किया जाता है, यहां पर दूरी बनाने का मतलब यह है कि जिस ने भी ज़ुल्म किया विशेष कर इमाम ज़माना अ.स. की ग़ैबत के समय को और लंबा करने में जो शामिल हैं।
यही वजह है कि हम अपनी दूरी बनाने के ऐलान के बाद तुरंत यह कहते हैं, ऐ इमाम हुसैन अ.स. मैं क़यामत तक हर उस इंसान के साथ नफ़रत और दूरी बनाए रखूंगा जिस ने आपसे नफ़रत और दूरी की और हर उस इंसान से अमन चैन के साथ रहूंगा जो आप के साथ अमन चैन से रहा। (ज़ियारते आशूरा)
अगर अज़ादार अपने समय के इमाम अ.स. के मददगारों में शामिल होना चाहता है तो उसे कर्बला को बहुत ध्यान से समझना होगा कि इमाम हुसैन अ.स. ने अपने मददगारों की कौन सी विशेषता को देख कर कहा कि जैसे सहाबी मुझे मिले न मेरे जद पैग़म्बर स.अ. को न मेरे वालिद इमाम अली अ.स. न मेरे भाई इमाम हसन अ.स. को मिले। (मौसूअतु कलेमातिल इमामिल हुसैन अ.स., पेज 395)
इमाम हुसैन अ.स. जब मुस्लिम इब्ने औसजा की लाश पर पहुंचे तो देखा मुस्लिम इस आयत की तिलावत कर रहे थे, मोमेनीन में से कुछ लोग हैं जो अपने वादे में सच्चे निकले, उन में से कुछ ने अपने वादे को पूरा करते हुए अपनी जान को क़ुर्बान कर दी और कुछ अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहे हैं, वह अपने वादे से मुखरे नहीं हैं। (सूरए अहज़ाब, आयत 23)
अगर हमको अपना राब्ता इमाम ज़माना अ.स. से बेहतर रखना है तो कर्बला को बहुत ध्यान से पढ़ना होगा, क्योंकि कर्बला वालों जैसी अगर ख़ूबियां और विशेषताएं हम में पाई गईं तभी हम वक़्त के इमाम अ.स. के साथ खड़े हो सकते है!
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