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[4/25, 10:32 PM] Mohd Qamar Rizvi: रोज़ा के नियम

 उपवास उस व्यक्ति के लिए है जो बाद में कही जाने वाली आठ चीजों से परहेज करेगा, सुबह की अज़ान से लेकर शाम तक की प्रार्थना, यानि इबादत को रोज़ा कहते हैं! 


 नियत


 अंक सं। 1529- किसी व्यक्ति के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह अपने जडबान से उपवास के इरादे को अनजाम दे,  उदाहरण के लिए, कि वह ज़बान से कहे कल उपवास करेगा, लेकिन उसके लिए ऐसा कुछ ज़बान से कहना ज़रूरी नहीं , जो उपवास को अमान्य करता है सिफॆ उससे परहेज़ करे काफी है।  और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह इस समय उपवास कर रहा है, उसे सुबह की नमाज़ से पहले कुछ खाने पीने से बचना चाहिए, और मग़रिब के कुछ समय बाद, तक ऐसा करने से जो उपवास को अमान्य करता है।परहेज़ करना चाहिए।
[4/26, 5:15 AM] Mohd Qamar Rizvi: अंक 1530: एक व्यक्ति रमजान के प्रत्येक दिन रात को उपवास करने का इरादा कर सकता है।

 अंक 1531: रमजान के महीने के दौरान उपवास करने के लिए अंतिम समय सुबह की अज़ान के दौरान होता है।

 अंक 1532: जिस व्यक्ति ने रोज़ा को अमान्य करने वाले कर्मों को नहीं किया है, जब भी वह दिन में  व्रत करने का इरादा रखता है, भले ही वह मग़रिब से थोड़ी पहले ही हो, उसका मुसतहेब व्रत मान्य है।
अंक 1536: यदि, उदाहरण के लिए, वह महीने के पहले दिन के इरादे से उपवास करता है, तो उसे पता चलता है कि यह दूसरा या तीसरा है, उसका उपवास सही है।

 अंक 1537: यदि कोई व्यक्ति रोज़ा रखने के लिए सुबह अज़ान  से पहले बेहोश हो जाता है और दिन के दौरान होश आता है, तो अनिवार्य  है कि सावधानी के अनुसार, उसे उस दिन का रोज़ा पूरा करना चाहिए, और यदि वह इसे पूरा नहीं करता है, तो वह अपने रोज़े की बाद में कज़ा करेगा ।

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[4/27, 5:17 AM] Mohd Qamar Rizvi: अंक 1539: अगर कोई व्यक्ति सुबह की नमाज अदा करने से पहले नियत करे और सो जाये, और मग़रिब के बाद उठता है, तो उसका व्रत मान्य होता है।
 अंक 1541: यदि कोई बच्चा रमज़ान की सुबह अज़ान से पहले  बालिग़ हो जाता है, तो उसे उपवास करना चाहिए, और यदि वह अज़ाने सुबह के बाद बालिग़ होता है, तो उस दिन उपवास करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन वह मुस्तहेब उपवास करने का इरादा रखता है, तो एहतियात मुस्तहेब यह है इसे पूरा करेगा ।
 अंक सं। 1545: यदि कोई काफिर रमज़ान के दिन मुसलमान होता है, और उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया है सुबह से जो रोज़े को अमान्य करता है, एहतेयाते वाजिब की बिना पर "हम उपवास कर रहे हैं" के इरादे से दिन के अंत तक संयम (भुखा)रखना चाहिए।  यदि वह नहीं करता है, तो वह उस दिन के रोज़े की क़ज़ा करेगा ।

 अंक 1546: यदि कोई मरीज़ रमजान के दिन के बीच में दोपहर से पहले ठीक हो जाता है और उसने ऐसा कुछ नहीं किया है जो तब तक उपवास को अमान्य करता है, तो एहतेयात वाजिब के अनुसार, उसे उस दिन उपवास करना चाहिए।  और अगर यह दोपहर में ज़ोहर बाद बेहतर हो जाता है, तो उपवास उसके लिए अनिवार्य नहीं है, और उसे   चाहिए बाद में उस दिन के रोज़े की क़ज़ा करे।
अंक 1549: यदि एक  मखसुस रोज़े में कोई व्यक्ति, जैसे कि रमजान,में उपवास करने में संकोच करता है , या उपवास तोड़ने का इरादा रखता है, अगर वह दोबारा नीयत नहीं करता है, तो उसका रोज़ा बातिल हो जाएगा, और यदि वह दोबारा नीयत कर लेता  है, तो  यह उस दिन रोज़ा  को पुरा करेगा और एहतियात वाजिब है, की उस दिन के रोज़े की दोबारह क़जा करेगा ।(इसलिये हमें चाहिये की रोज़े के दरमियान बिलकुल तोड़ने का इरादा ना करें)
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वही जोइन हों जो उरदु नहीं जानते ज़ेयादा बेहतर होगा। 
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[4/28, 4:15 PM] Mohd Qamar Rizvi: चीजें जो उपवास को अमान्य करती हैं

 अंक 1551: आठ चीजें व्रत को अमान्य करती हैं:
 पहला: खाना-पीना।
 दूसरा: संभोग।
 तीसरा: हस्तमैथुन।  और हस्तमैथुन यह है कि एक आदमी संभोग के बिना खुद के साथ या अन्य तरीकों से कुछ करता है, ताकि वीर्य उसके पास से निकल जाए।  और महिलाओं में इसका बोध अंक (345) में बताया गया है।
 चौथा: एहतियात वाजिब के अनुसार ईश्वर और पैगंबर और पैगंबर के उत्तराधिकारियों  के सिलसिले में झूठ बोलना।
 पांचवां:  एहतियात वाजिब के अनुसार गले में मोटी धूल लाना।
 छठा: सुबह की तक हालते जनाबत में ,  पर बने रहना।
 सातवां: धाराप्रवाह चीजों के साथ वर्तनी।
 आठवां: जानबूझकर उल्टी करना।
 और इनके मसाइल बाद में बयान किये जायेंगे।
वो चीज़ें जोरोज़े को बातिल कर देती हैं उसके एहकाम, 


 अंक 1623: यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर और इच्छा से कुछ करता है जो उपवास को अमान्य करता है, तो उसका उपवास बातिल हो जाएगा।  और अगर यह जानबूझकर नहीं है, तो ठीक रहेगा है।  लेकिन अगर  मुजनिब रात में दो बार उठने के बाद गुस्ल ना करे अज़ाने सुबह से पहले (1600)  मसले के तहत उसका रोज़ा बातिल है!और यदि कोई व्यक्ति यह नहीं जानता है कि जो कुछ कहा गया है,(मुबतेलाते रोज़ा) वह उपवास को अमान्य कर देता है, यदि वह इस जानने में   कोताही नहीं किया है, और उसे कोई संदेह नहीं है, और उसे धार्मिक प्राधिकरण में विश्वास है, यदि वह ऐसा करता है, तो उसका उपवास अमान्य नहीं होगा, सिवाये  खाने-पिने और जेमा(सेक्स) के।

 अंक सं। 1624: यदि कोई उपवास करने वाला व्यक्ति अनजाने में से कोई एक कार्य करता है जो उपवास को अमान्य करता है, और यह मानते हुए कि उसका उपवास अमान्य हो गया है, तो वह जानबूझकर उनमें से एक को फिर से अंजाम देता है, ते फिर उस पर कफ्फारा और क़जा दोनों वाजिब होगा। 

 अंक सं। 1625: अगर किसी व्यक्ति को उपवास करने वाले व्यक्ति के गले में कुछ फेंकने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसका उपवास शून्य नहीं होगा, लेकिन अगर वह खाने या पीने या संभोग के द्वारा अपना उपवास तोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, उदाहरण के लिए, अगर उसे कहा जाएगा कि आप नहीं खाते हैं, हम आप पर जानि या माली नुकसान करेंगे।  यदि वह नुकसान को रोकने के लिए कुछ खाता है, तो उसका उपवास शून्य हो जाएगा।  और इसके अलावा, एहतियाते वाजिब के तौर पर तीन चीजों (खाना,पीना,और संभोग) के अलावा दुसरी रोज़ा तोड़ देने वाली हों फिर भी शून्य कर दिया जाएगा।

 अंक 1626: उपवास रखने वाले व्यक्ति को ऐसी जगह नहीं जाना चाहिए, जहाँ उसे पता हो कि उसके गले में कुछ फेंका जायेगा , या वे उसे अपना उपवास तोड़ने के लिए मजबूर करेंगे, और अगर वह जाता है और ऐसा कुछ होता है, जो  मजबूरी के कारण उपवास को अमान्य बना देता है, तो उसका उपवास बातिल हो जाएगा।  और इसी तरह यह है - एहतियात लाज़िम के तौर पर - अगर उसके गले में कुछ फेंका जाता है।तब भी बातिल हो जायेगा।
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[4/29, 5:12 AM] Mohd Qamar Rizvi: व्रत करने वाले के लिए क्या मकरुह है


 अंक 1627: कुछ चीजें हैं जो एक उपवास करने वाले के लिए मकरुह हैं, जैसे:
 १- औषधि को आँखों में डालने और सुरमे को रगड़ने पर, यदि स्वाद या गंध गले तक पहुँच जाती है।
 2- रक्त देने और स्नान करने जैसे कुछ भी करने से कमजोरी आती है।
 3 - नाक में दवा डालना, अगर वह नहीं जानता कि यह गले तक पहुंचता है, और अगर वह जानता है कि गले तक पहुंचेगा जायेज़ नहीं है।
 4- सुगंधित पौधों को सूँघना।
 5- महिला का पानी में बैठना ।
 6- सपोसिटरी का उपयोग करना।
 7- शरीर में कपड़े को गीला करना।
 8- शुरुआती, और कुछ भी जिसके कारण मुंह से खून निकलता है।
 9- गीली लकड़ी से ब्रश करना।
 10 - पानी रहित या मुंह में बहने वाली कोई चीज।
 यह भी अपनी पत्नी, को बोसा लेना इस इरादे से की मनी बाहर नहीं अायेगी और वो अपनी जगह से हरकत कर जाये यानि सिफॆ शहवत में आ जाये मकरुह है! 

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[4/30, 1:17 AM] Mohd Qamar Rizvi: अंक 1553: यदि किसी व्यक्ति को पता चलता है कि जब वह सहरी कर रहा है तो  सुबह हो गई है, तो उसे अपने मुंह के निवाले को निकाल लेना चाहिए, और यदि वह जानबूझकर इसे निगलता है, तो उसका उपवास बातिल हो जाएगा, और बाद में बताये जाने वाले आदेश के अनुसार कफ्फारा उस पर अनिवार्य होगा।

 अंक 1554: यदि कोई उपवास करने वाला अनजाने में कुछ खा या पी लेता है, तो उसका उपवास अमान्य नहीं होगा।

 अंक 1555: एक इंजेक्शन रोज़े को अमान्य नहीं करता है, भले ही इंजेक्शन ताक़त की हो या सीरुम चीनी मुक्त हो, और सांस की तकलीफ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला स्प्रे भी तेजी से अमान्य नहीं करता है यदि यह केवल फेफड़ों में प्रवेश करता है।  यह स्वाद को अमान्य नहीं करता है, हालांकि इसका स्वाद गले तक पहुंचता है।  और अगर यह नाक पर पड़ता है, तो यह गले में नहीं पहुंचने पर उपवास को अमान्य नहीं करेगा।

 अंक 1556: यदि कोई उपवास करने वाला व्यक्ति जानबूझकर दाँत से छोड़ी गई कोई वस्तु निगलता है, तो उसका उपवास बालिल हो जाएगा।

 अंक 1557: जो व्यक्ति उपवास करना चाहता है, उसे अज़ान सुबह से पहले अपने दांत साफ करना वाजिब नहीं लेकिन यदि वह जानता है कि दिन के दौरान दांतों से बचा हुआ भोजन बाहर अाजायेगा , तो उसे अवश्य दाँतों को साफ कर लेना चाहिये।
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[5/1, 7:03 AM] Mohd Qamar Rizvi: चीजें जो उपवास को अमान्य करती हैं

 अंक 1551: आठ चीजें व्रत को अमान्य करती हैं:
 पहला: खाना-पीना।
 दूसरा: संभोग।
 तीसरा: हस्तमैथुन।  और हस्तमैथुन यह है कि एक आदमी संभोग के बिना खुद के साथ या अन्य तरीकों से कुछ करता है, ताकि वीर्य उसके पास से निकल जाए।  और महिलाओं में इसका बोध अंक (345) में बताया गया है।
 चौथा: एहतियात वाजिब के अनुसार ईश्वर और पैगंबर और पैगंबर के उत्तराधिकारियों  के सिलसिले में झूठ बोलना।
 पांचवां:  एहतियात वाजिब के अनुसार गले में मोटी धूल लाना।
 छठा: सुबह की तक हालते जनाबत में ,  पर बने रहना।
 सातवां: धाराप्रवाह चीजों के साथ वर्तनी।
 आठवां: जानबूझकर उल्टी करना।
 और इनके मसाइल बाद में बयान किये जायेंगे।
वो चीज़ें जोरोज़े को बातिल कर देती हैं उसके एहकाम, 


 अंक 1623: यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर और इच्छा से कुछ करता है जो उपवास को अमान्य करता है, तो उसका उपवास बातिल हो जाएगा।  और अगर यह जानबूझकर नहीं है, तो ठीक रहेगा है।  लेकिन अगर  मुजनिब रात में दो बार उठने के बाद गुस्ल ना करे अज़ाने सुबह से पहले (1600)  मसले के तहत उसका रोज़ा बातिल है!और यदि कोई व्यक्ति यह नहीं जानता है कि जो कुछ कहा गया है,(मुबतेलाते रोज़ा) वह उपवास को अमान्य कर देता है, यदि वह इस जानने में   कोताही नहीं किया है, और उसे कोई संदेह नहीं है, और उसे धार्मिक प्राधिकरण में विश्वास है, यदि वह ऐसा करता है, तो उसका उपवास अमान्य नहीं होगा, सिवाये  खाने-पिने और जेमा(सेक्स) के।

 अंक सं। 1624: यदि कोई उपवास करने वाला व्यक्ति अनजाने में से कोई एक कार्य करता है जो उपवास को अमान्य करता है, और यह मानते हुए कि उसका उपवास अमान्य हो गया है, तो वह जानबूझकर उनमें से एक को फिर से अंजाम देता है, ते फिर उस पर कफ्फारा और क़जा दोनों वाजिब होगा। 

 अंक सं। 1625: अगर किसी व्यक्ति को उपवास करने वाले व्यक्ति के गले में कुछ फेंकने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसका उपवास शून्य नहीं होगा, लेकिन अगर वह खाने या पीने या संभोग के द्वारा अपना उपवास तोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, उदाहरण के लिए, अगर उसे कहा जाएगा कि आप नहीं खाते हैं, हम आप पर जानि या माली नुकसान करेंगे।  यदि वह नुकसान को रोकने के लिए कुछ खाता है, तो उसका उपवास शून्य हो जाएगा।  और इसके अलावा, एहतियाते वाजिब के तौर पर तीन चीजों (खाना,पीना,और संभोग) के अलावा दुसरी रोज़ा तोड़ देने वाली हों फिर भी शून्य कर दिया जाएगा।

 अंक 1626: उपवास रखने वाले व्यक्ति को ऐसी जगह नहीं जाना चाहिए, जहाँ उसे पता हो कि उसके गले में कुछ फेंका जायेगा , या वे उसे अपना उपवास तोड़ने के लिए मजबूर करेंगे, और अगर वह जाता है और ऐसा कुछ होता है, जो  मजबूरी के कारण उपवास को अमान्य बना देता है, तो उसका उपवास बातिल हो जाएगा।  और इसी तरह यह है - एहतियात लाज़िम के तौर पर - अगर उसके गले में कुछ फेंका जाता है।तब भी बातिल हो जायेगा।
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[5/2, 2:18 AM] Mohd Qamar Rizvi: जहां कफ्फारा और क़ज़ा वाजिब है


 अंक 1628: अगर कोई व्यक्ति रमजा़न के रोज़े को खाना, पीना, संभोग, हस्तमैथुन, या अज़ाने सुबह तक जनाबत पर बाकी रहना, अगर यह जानबूझकर है और मजबूरी और ज़बरदस्ती के कारण नहीं है, तो क़ज़ा के अलावा, कफ्फारा भी उस पर वाजिबहै।
      रमज़ान का कफ्फारा


 अंक 1630:(1)एक नौकर को रिहा किया जाना चाहिए, या (2) दो महीने का रोज़ा रखना चाहिए, या (3)साठ गरीब लोगों को खाना खिलाना चाहिए, या उनमें से प्रत्येक को एक मुद ग़ल्ला देनाॊचाहिए जो लगभग "750" ग्राम है।  - अर्थात्, गेहूं या जौ या रोटी और जिसे भी दे, और अगर ये उसके लिए संभव नहीं हैं, तो उसे जितना संभव हो उतना देना चाहिए, और यदि यह संभव नहीं है, तो उसे माफी इस्तेग़फार करना चाहिए।  और  एहतियात वाजिब यह है जब भी उसके लिये मुमकिन हो अन्जाम देना चाहिए।

अंक 1637: यदि कोई व्यक्ति रमज़ान के एक दिन में कई बार खाता या पीता है, या जेमा, करता है या हस्तमैथुन करता है, तो इन सभी के लिए एक कफ्फारा वाजिब है।

 अंक 1638: यदि कोई रोज़ा रखने वाला व्यक्ति हम बिसतरी और (खुद से मनी निकालने) के अलावा कुछ करता है जो रोज़े को बातिल करता है, और फिर अपने बीवि के  साथ हम बिसतरी करता है, तो दोनों के लिए एक कफ्फारा काफी है।
: अंक 1656: एक व्यक्ति जिसने रमजान का क़ज़ा रोज़ा रखा है, अगर वह जानबूझकर दोपहर में कुछ ऐसा करता है जो रोज़े को बातिल करता है, तो उसे दस गरीबों को   खाना खिलाना चाहिए, और यदि वह नहीं कर सकता है, तो उसे तीन दिनों के लिए रोज़ा कफ्फारे के रखना चाहिए।

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[5/3, 2:59 AM] Qamar: जहां केवल क़ज़ा वाजिब है 

 अंक 1657: कुछ मामलों में , केवल कजा एक व्यक्ति पर वाजिब है और कफ्फारा वाजिब नहीं है:
 पहला: रमज़ान की रात मुजनीब होना और मसला न,(1601) में बताए गए मसले के मोताबिक  दूसरी मर्तबा आंख ना खुले इस पर सिर्फ क़‌ज़ा ‌वा‌जिब है । 
 दूसरा: एक ऐसा अमल ना करे जो रोज़े को बातिल करता है लेकिन अपनी नियत को तोड दे तो उसपर सिर्फ कजा़ वाजीब है ।
 तीसरा: रमजान के दौरान जनाबत के ग़ुस्ल को भूलना और जनाबत के साथ एक या एक से अधिक दिनों तक रोज़ा रखना और जब उसे मालूम पड़े तो सिर्फ उन दिनों की कज़ा वाजिब है।
 चौथा: रमजान के महीने में कुछ ऐसा करना जो रोज़े को बातिल कर देता है  बिना यक़िन  किए कि वह सुबह है या नहीं, और फिर पता चला कि वह सुबह थी ।
 पांचवां: यदि कोई कहता है कि सुबह नहीं हुई है और इंसान कुछ ऐसा करे जो रोज़े को बातिल करता है ,और बाद में मालूम पड़े की सुबह हो गई थी तो उस दिन का सिर्फ क़ज़ा वाजिब है ।
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[5/4, 2:00 AM] Mohd Qamar Rizvi: वो मकामात जहां सिर्फ रोज़े की                       कज़ा वाजिब है ।



अंक 1657 ,छटा : यदि कोई कहता है कि यह सुबह है और  व्यक्ति उस पर विश्वास नहीं करता है, या सोचता है कि वह मज़ाक कर रहा है, और खुद तहकीक नहीं करता है और ऐसा कुछ करता है जो रोज़े  को बातिल करता है, तो यह मालूम हो  कि यह सुबह थी।तो उस पर सिर्फ कज़ा वाजिब है।
 सातवां: किसी और के अनुसार रोज़े को खोलने के लिए जिसके लिए वो शख्स हुज्जत हो शरियत के कामों में , या यह कि वह गलती से मानता है कि उसकी खबर एक सच्ची और भरोसे के काबिल  है, और वो भरोसा कर के रोज़ा खोल ले  फिर यह पता चलता है कि यह मग़रिब नहीं थी ,तो उसपर सिर्फ कज़ा वाजिब है ।
 आठवां: यदि उसे यकीन है कि मगरिब हो गई है और इफ्तार कर ले , और बाद में मालूम हो की मगरिब नहीं हुई है , लेकिन अगर बादल मौसम की वजह से  वह सोचता है कि  मग़रिब है, और बाद में मालूम हो की मग़रिब नही हुई है , तो  एहतियात की बिना पर कज़ा वाजिब है ।
 नौवां: प्यास से राहत करने के लिए, कोई कुल्ली करे और पानी बे इख्तियार मुंह में चला जाए या भूल जाए और निगल ले तो उस पर कज़ा वाजिब है , लेकिन अगर  वज़ू के लिए कूल्ली कर रहा है और पानी बे इख्तियार मुंह  में चला जाए तो कज़ा वाजिब नहीं उसका रोज़ा सही रहेगा ।
 दसवां: कोई शख्स मजबूरी या तकैय्या की वजह से इफ्तार करे ,खाना ,पीना या हम बिस्तरी या कोई दूसरी चीजों से रोज़ा खोले तो उस पर एहतियात की बिना पर  सिर्फ कज़ा वाजिब है ।
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[5/5, 3:09 AM] Mohd Qamar Rizvi: मुसाफिर के रोज़े के अहकाम।

अगर कोई शख्स माहे रमज़ान में ज़ोहर से पहले सफर करता है ,की आना जाना दोनों मिला कर ४४किलो मीटर हो जाता है और उसका वहां दस दिन रुकने का इरादा भी ना हो तो उसका रोज़ा कसर (यानी नहीं माना जाएगा )होगा ,लेकिन वो सफर हराम के इरादे से ना हो ।

(पांच अहम सवाल और उसके जवाब दफ्तर से।)
1,प्रश्न: यदि एक रोज़ा  रखने  वाला व्यक्ति ज़ुहर के बाद यात्रा करता है और अगले दिन ज़ुहर से पहले आता है, तो इन दो दिनों के रोज़े का क्या हुक्म है?

 उत्तर: पहले दिन उनका रोज़ा सही है और वह सफर के दूसरे दिन रोज़े की  नियत  नहीं कर सकते, जब तक कि वह दोपहर से पहले अपने वतन नहीं पहुंचते, बशर्ते कि उन्होंने कुछ ऐसा ना किया हो जो रोज़े को बातिल करता हो।

 2,प्रश्न: यदि कोई व्यक्ति रमजान के पवित्र महीने में दोपहर से पहले अपने वतन में आता है और उसने यात्रा के दौरान रोज़े को बातिल करने वाला  कुछ नहीं किया है, और  केवल एक सिगरेट पिया था , क्या उसे उस दिन रोज़ा  रखना चाहिए?

 उत्तर: एहतियात वाजिब की बिना पर , उस दिन के रोज़े को क़ुबूल होने के इरादे  से रखेगा, और बाद में क़ज़ा भी  करेगा।

 3,प्रश्न: घर से स्कूल  की दूरी (चौंवालिस किलोमीटर) से अधिक पढ़ने जाने वाले छात्रों पर रोज़े का  क्या हुक्म  है?

 उत्तर: यदि ये यात्राएँ आम तौर पर महीने में दस दिन होती हैं और वे छह महीने तक इसी तरह यात्रा करते रहते हैं, तो उनकी नमाज़ और रोज़ा  हर सफर में पूरे होते हैं।

 4,प्रश्न: अपने घर से ३०किमी दूर पढ़ाने के लिए जाने वाले शिक्षक के रोज़े पर  क्या हुक्म होता है, और ९ साल तक, एक ,मरजा ,के फतवे पर अमल करते हुए उसने सोचा कि यात्रा उसके काम की आवश्यकता है, इसलिए उसने रोज़े और नमाज़ पूरे रखे हैं उसके रोज़े का क्या हुक्म है?  

 उत्तर: उनकी प्रार्थना और उपवास एकदम सही है।

5,प्रश्न: माहे मुबारक रमज़ान में रोज़े की हालत में सफर करना कैसा है?

 उत्तर: रोज़े से भागने के मकसद से यात्रा करना मकरूह है,और अगर ज़रूरी सफर हो तो कोई हर्ज नहीं है।
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[5/6, 3:34 AM] Qamar: अंक (1554) यदि कोई व्यक्ति गलती से कुछ खाता या पीता है, तो रोज़ा बातिल नहीं है।
अंक (1556) यदि कोई रोज़ा रखने वाला व्यक्ति जानबूझकर दांतों में फंसी चीज निगलता है, तो उसका रोज़ा बातिल हो जाता है।
अंक (1558) मुंह का पानी निगलने से रोज़ा बातिल नहीं होता, भले ही अचार आदि के विचार से मुंह पानी से भर गया हो।

 अंक (1559) सर और सीने का बलगम निगलने में कोई नुकसान नहीं है जब तक कि यह मुंह के अंदरूनी हिस्से तक नहीं पहुंचता है, लेकिन अगर यह मुंह में आ जाए तो   एहतियात मस्तहेब है कि इसे बाहर थूक देना चाहिए ।

अंक (1562) एक व्यक्ति (मामूली) कमज़ोरी के कारण रोज़ा नहीं तोड़ सकता है, लेकिन अगर कमज़ोरी इस हद तक है कि यह आमतौर पर बर्दाश्त नहीं कर सकता है, तो रोज़ा तोड़ने में कोई बुराई नहीं है।लेकिन बाद में कज़ा करना पड़ेगा ,!
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[5/7, 2:37 AM] Mohd Qamar Rizvi: 5 -  गो़बार को हल्क़ तक पहोंचाना ।
 (1582) एहतियात वाजिब की बुनियाद पर कसीफ गो़बार का हल्क़ तक पहोंचाना रोज़े को बातिल कर देता है। भले ही गो़बार इस तरह की चीज़ का हो जिसका खाना हलाल है जैसे आटा या हराम हो जैसे मिट्टी ।

 (1583) गै़रे कसिफ गो़बार हल्क़ तक पहोंचने से रोज़ा बातिल नहीं होता  है।

 (1584) अगर हवा के कारण कसिफ गो़बर पैदा हो और इंसान एहतियात कर सकने के बावजूद एहतियात ना करे और गो़बार उसके हल्क़ तक पहोंच जाए तो एहतियात वाजिब की बिना पर उसका रोज़ा बातिल हो जाता है , 

(1585) एहतियात  वाजिब है कि रोजे़दार   सिगरेट और तम्बाकू के धुएं को भी हल्क़ तक ना पहोंचाए।
 (1587) अगर कोई शख्स भूल जाए कि रोज़े से  हैं एहतियात ना करे या बे एखतियार गु़बार वगै़रा उसके हल्क में पहोंच जाए तो उसका रोज़ा बातिल नहीं होता ।
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[5/8, 3:01 AM] Mohd Qamar Rizvi: 1-           (उल्टी होना ،)

 अंक (1616) अगर रोज़े दार जान बुझ कर उल्टी करे, भले ही वह बीमारी आदि के कारण ऐसा करने के लिए मजबूर हो, उसका रोज़ा बातिल हो जाता है, लेकिन यदि वह भूल कर या बे इख्तियार   ऐसा करता है, तो कोई समस्या नहीं है।

 अंक (1617) यदि कोई व्यक्ति रात में कुछ खाता है, जिसे दिन में उल्टी होने का कारण माना जाता है, और अगर उल्टी हो भी जाए तो उस दिन का रोज़ा माना जाए है।

 अंक (1618) यदि रोजेदार उल्टी को रोक सकता है, और उल्टी अपने आप हो रही है , तो इसे रोकना ज़रूरी नहीं है।
 अंक (1621) यदि किसी रोजेदार को  पता हो कि डकार लेने की वजह से कोई चीज़ उसके हल्क से बाहर आ जाएगी और  डकार लेना इस तरह हो की उसपर उल्टी करना कहा जाए तो जानबूझ कर नहीं करना चाहिए, लेकिन अगर उसे ऐसा यकीन नहीं है तो कोई समस्या नहीं है।

 अंक (1622) यदि रोजेदार डकार ले और कोई चीज उसके गले या मुंह में आजाए , तो उसके लिए यह आवश्यक है कि वह इसे उगल दे और यदि वो चीज़ अनजाने में उसके पेट में चली जाती है, तो रोज़ा  सही  है।
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[5/9, 5:05 AM] Mohd Qamar Rizvi: वो अफ़राद जिनके लिए रोज़ा  रखना वाजिब नहीं हैं

 अंक (1694) यदि कोई व्यक्ति बूढ़े होने के कारण रोज़ा रखने में माजु़र है, तो उसके लिए रोज़ा रखना वाजिब  नहीं है, लेकिन  उसे हर दिन के बजाय भोजन 750ग्राम (यानी गेहूं या रोटी या कुछ इसी तरह) देना आवश्यक है।  ।

 अंक (1695) यदि कोई व्यक्ति बुढ़ापे के कारण रमज़ान के महीने में रोज़ा नहीं रखता है, और वह रमज़ान के बाद रोज़ा रखने के लायक़ हो जाता है, तो  एहतियात मुस्तहेब है कि उसे छूटे हुए रोज़ों की कज़ा करना चाहिए।

 अंक (1696) यदि कोई व्यक्ति ऐसी बीमारी से पीड़ित है जो उसे बहुत प्यासा कर देता है और वह प्यास सहन नहीं कर सकता है, या प्यास की वजह से उसे बहुत तकलीफ़ होती हो , तो उसके लिए रोज़ा वाजिब नहीं है, लेकिन हर दिन के बजाय गरीबों को एक मुद यानी 750ग्राम  भोजन देना आवश्यक है।  यदि वह रमज़ान बाद रखने के काबिल हो जाता है, तो यह छूटे हुए रोजों की क़ज़ा वाजिब नहीं है।

 अंक (1697)  उस महिला के लिए वाजिब नहीं है जो उस दिन रोज़ा रखने वाली हो, जो उसके या उसके जन्म देने वाले बच्चे के लिए हानिकारक है, और इसके लिए एक गरीब व्यक्ति को हर दिन के बदले भोजन देना 759ग्राम आवश्यक है, और उस रोज़े की बाद में कजा भी वाजिब है।

 अंक (1698) यदि कोई महिला अपने बच्चे को दूध पिलाती हो, और उसका दूध कम है (भले ही वह बच्चे की मां हो,या दाया और बच्चे को मुफ्त में दूध पिला रही हो, तो रोज़ा रखना उसके या  उस बच्चे के लिए हानिकारक है जो  दूध पी रहा है), तो यह महिला के लिए उपवास करना वाजिब नहीं है।  दोनों मामलों में, छूटे हुए रोजों  की कजा वाजिब है। हालाँकि, (एहतियात वाजिब की बिना पर), यह नियम केवल तभी लागू होता है जब बच्चा उसी के दूध पर निर्भर होता है, लेकिन अगर बच्चे को दूध पिलाने का कोई अन्य तरीका है।  या दूध के लिए बोतल आदि से मदद लें  उस मामले में, इस आदेश को साबित करने में इश्काल है।
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[5/10, 3:40 AM] Mohd Qamar Rizvi: हराम और मकरोह रोज़े

 अंक (1707) ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा के दिन रोज़ा रखना हराम है, और यह जाने बिना कि यह शाबान की आखिरी तारीख है या रमजान का पहला दिन है।अगर वो उस दिन पहेली रमज़ान की नियत से रोज़ा रखे हराम है।
अंक (1709) अगर औलाद का मुस्तहेब रोज़ा (मां बाप का औलाद से शफकत की वजह से)इनके लिए अज़ीयत का मोजीब हो तो बेटे के लिए मस्ताहेब रोज़ा रखना हराम है ।

अंक (1710) अगर बेटा मां या बाप की इजाज़त के बगैर मुस्ताहेब रोज़ा रख ले और मां या बाप दिन में किसी वक़्त मना करें रोज़ा रखने से और ना तोड़ना वालेदैन के लिए अजीयत का सबब बने तो रोज़ा तोड़ देना चाहिए। 


अंक (1715) अशुरा के दिन रोज़ा रखना मकरूह है, और उस दिन रोज़ा रखना  मकरूह है, जिस दिन  यह शक हो कि यह 'अराफा का दिन है या ईद-उल-अजहा' का दिन है।
अंक (1713) यदि कोई व्यक्ति यह मानता है कि रोज़ा उसके लिए हानिकारक नहीं है, यदि वह रोज़ा रखता है और मगरिब के बाद पता चलता है कि रोज़ा उसके लिए इतना हानिकारक है कि की जिसकी परवाह की जनी चाहिऐ ( एहतियात वाजिब की बिना पर ) इस रोज़े की कज़ा करना वाजिब है।
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