Skip to main content

यौमे कुद्स आखिर क्या है और माहे रमज़ान में क्यों मनाया जाता है❓

यौमे कुद्स आखिर क्या है और माहे रमज़ान में क्यों मनाया जाता है❓

कुद्स की तारीख़ समझने के लिए सबसे पहले हमें ये पता होना जरूरी है की सन् 1979 में ईरानी इंकलाब के रहबर इमाम खुमैनी साहब ने ये ऐलान किया था कि माहे रमज़ान के अलविदा जुमे को सारी दुनिया कुद्स दिवस की शक्ल में मनाए। दरअसल कुद्स का सीधा राबेता मुसलमानों के किब्ला ए अव्वल बैतूल मुकद्दस यानी मस्जिदे अक्सा जो की फिलिस्तीन में है, उसपर इजरायल ने आज से 72 साल पहले तकरीबन सन् 1948 में नाजायेज़ कब्ज़ा कर लिया था जो आज तक क़ायम है। इस्लामी तारीख़ के मुताबिक़ खनाए काबा से पहले मस्जिदे अक्सा ही मुसलमानों का किब्ला हुआ करती थी और सारी दुनिया के मुसलमान बैतूल मुकद्दस की तरफ रुख़ करके नमाज़ पढ़ते थे, उसके बाद ख़ुदा के हुक्म से क़िब्ला बैतूल मुकद्दस से बदल कर खानए काबा कर दिया गया था जो अभी भी मौजूदा क़िब्ला है। तारीख़ के मुताबिक़ मस्जिदे अक्सा सिर्फ पहला क़िब्ला ही नहीं बल्कि कुछ और वजह से भी मुसलमानों के लिए खास और अहम है। रसूले ख़ुदा(स) अपनी ज़िन्दगी में मस्जिदे अक्सा तशरीफ़ ले गए थे और वही से आप मेराज पर गए थे। इसी तरह हमारे इमाम जाफर सादिक(अस) के हवाले से हदीस में मिलता है की आप फरमाते है, मस्जिदे अक्सा इस्लाम की एक बहुत अहम मस्जिद है और यह पर नमाज़ और इबादत करने का बहुत सवाब है। बहुत ही अफसोस की बात है कि ये मस्जिद आज यहूदियों के नाजायेज़ कब्जे में है।

ये मजमून अंजुमने अब्बासिया नगराम की जानिब से है। फिलिस्तीन पर नाजायज इजराइली कब्जे की तारीख समझने के लिए सबसे पहले हम ये बात पता होनी चाहिए कि इसकी शुरुवात सबसे पहले सन् 1917 में हुई जब ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री जेम्स बिल्फौर ने फिल्सितीन में एक यहूदी मुल्क बनाने के पेशकश रखी और कहा की इस काम में लंदन पूरी तरह से मदद करेगा और उसके बाद हुआ भी यही की धीरे धीरे दुनिया भर के यहूदियों को फिलिस्तीन पहुंचाया जाने लगा और बिलआख़िर सन् 1948 में इजरायल को एक यहूदी देश की शक्ल में मंजूरी दे दी गई और दुनिया में पहली बार इजरायल नाम का एक यहूदी मुल्क वजूद में आया। इसके बाद इजरायल और अरब मुल्कों के दरमियान बहुत सी जंगे हुई मगर अरब मुल्क हार गए और काफी जान माल का नुक्सान हो जाने की वजह से सारे अरब मुल्क खामोश हो गए और उनकी खामोशी को अरब मुल्कों की तरफ से हरी झंडी भी मान लिया गया। जब सारे अरब मुल्क थक हार कर खामोश हो गए फिर वो मुजाहिद मर्दे मैदान खड़ा हुआ जिसे दुनिया इमाम रूहूल्लाह खुमैनी के नाम से जानती है। तक़रीबन सन् 1979 में इमाम खुमैनी साहब ने नजायज इजराइली हुकूमत के मुकाबले में बैतूल मुकद्दस की आज़ादी के लिए माहे रमज़ान के आख़िरी अलविदा जुमे को यौमे कुद्स का नाम दिया और अपने अहम पैग़ाम में आपने ये ऐलान किया की उन्होंने कितने सालों तक अरब हुकूमतों को इजराइली फित्ने के बारे में आगाह किया और सारी दुनिया के मुसलमानों से अपील करी की वो इस नजायज कब्जे के खिलाफ आपस मे एकजुट हो जाएं और हर साल अलविदा जुमे को यौमे कुद्स मनाए और मुसलमानों के इस्लामी कानूनों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करें। जहां इमाम खुमैनी ने यौमे कुद्स को इस्लाम के ज़िंदा होने का दिन क़रार दिया वहीं आपके आलावा बहुत से और दीगर अयातुल्लाह, और इस्लामी लीडर्स ने भी यौमे कुद्स को तमाम मुसलमानों की इस्लामी ज़िम्मेदारी क़रार दी। लिहाज़ा सन् 1979 में इमाम खुमैनी साहब के इसी ऐलान के बाद से आज तक न सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि सारी दुनिया के तमाम मुल्कों में जहां जहां भी मुसलमान रहते है, वो माहे रमज़ान के अलविदा जुमे को मस्जिदे अक्सा और फिलिस्तीनियों की आज़ादी के लिए एहितेजाज करते हैं और रैलियां निकालते हैं।

हमे ये भी मालूम होना चाहिए की आज तक फिलिस्तीनी अपनी आज़ादी के लिए लड़ और जद्दोजहद कर रहे हैं और इजरायल अपनी भरपूर ताकत से उनको कुचलता आ रहा है, जब हम अपने घर में पुर सुकून होकर रोज़ा खोलते हैं उस वक़्त उसी फिलिस्तीन में हजारों मुसलमान इजराइली बमों का निशाना बनते हैं, उनकी इज्जत और नमूस के साथ ज़ुल्म किया जाता है और ये सब आज तक जारी है और इस ज़ुल्म पर सारी दुनिया के मुमालिक खामोश है, क्योंकि इजरायल को अमरीका और लंदन का साथ मिला हुआ है। इस साल दुनिया भर में लॉक डाउन के वजह से नमाजे जुमा और एहतेजाज मुमकिन नहीं है इसलिए इस बार हमें चाहिए की इजरायल के ख़िलाफ़ और बैतूल मुकद्दस के हक़ में अपनी आवाज को ऑनलाइन बुलंद करें और जहां तक जितना मुमकिन हो सके मोमेनीन को इसके बारे में बताएं। अल्लाह मजलूमों के हक़ में हम सबकी दुआओं को कुबूल फरमाए और ज़ालेमीन को निस्तो नाबूद करदे इंशाअल्लाह। अंजुमने अब्बासिया नगराम आपकी शुक्रगुजार है कि आपने अपना कीमती वक़्त निकालते हुए ये अहम मजमून पढ़ा लिहाज़ा आखिर में गुज़ारिश है कि एक मर्तबा इमाम खुमैनी साहब के लिए सुराए फातेहा ज़रूर पढ़े और इसको ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करके इसके सवाब में शामिल हो जाएं।

Comments

Popular posts from this blog

अमाले शबे कद्र हिंदी,amaal e shab e qadr in hindi,

Amaal-e-Shab-e-Qadr in Hindi* उन्नीसवी रात यह शबे क़द्र की पहली रात है और शबे क़द्र के बारे में कहा गया है कि यह वह रात है जो पूरे साल की रातों से अधिक महत्व और फ़ज़ीलत रखती है, और इसमें किया गया अमल हज़ार महीनों के अमल से बेहतर है शबे क़द्र में साल भर की क़िस्मत लिखी जाती है और इसी रात में फ़रिश्ते और मलाएका नाज़िल होते हैं और इमाम ज़माना (अ) की ख़िदमत में पहुंचते हैं और जिसकी क़िस्मत में जो कुछ लिखा गया होता है उसको इमाम ज़माना (अ) के सामने पेश करते हैं। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि इस रात में पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत करे और दुआएं पढ़ता रहे और अपने आने वाले साल को बेहतर बनाने के लिए अल्लाह से दुआ करे। शबे क़द्र के आमाल दो प्रकार के हैं: एक वह आमाल हैं जो हर रात में किये जाते हैं जिनको मुशतरक आमाल कहा जाता है और दूसरे वह आमाल हैं जो हर रात के विशेष आमाल है जिन्हें मख़सूस आमाल कहा जाता है। वह आमाल जो हर रात में किये जाते हैं 1⃣ *ग़ुस्ल* (सूरज के डूबते समय किया जाए और बेहतर है कि मग़रिब व इशा की नमाज़ को इसी ग़ुस्ल के साथ पढ़ा जाय) 2⃣ दो रकअत नमाज़, जिसकी हर रकअत में एक बार सूरह *

बकरा ईद की नमाज़ का तरीक़ा।

 बकरा ईद की नमाज़* १. बकरा ईद की नमाज़ को जमाअत  के अलावा फुरादा नमाज़ करके भी अदा किया जा  सकता है । २.बकरा ईद की नमाज़ ज़ोहर से पहले कभी भी पढ़ी जा सकती है । ३. ये दो रकात की नमाज़ होगी  बस नियत करें की *नमाज़ ए बकरा ईद  पढ़ता हूं सुन्नत कुरबतन इल्लल्लाह* । पहली रकात में सुर ए अलहमद के बाद  सुरा ए अल-आला पढ़ें  *बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निररहिम* *सब्बे हिसमा रब्बिकल आ’ला अल्लज़ी ख़लक़ा फ़सव्वा वल्लज़ी क़द दरा फ़हादा वल्लज़ी अख़रजल मर’आ फजा'अलहु ग़ोसाअन अहवा सनुक़रेओका फला तनसा, इल्ला माँशा'अल्लाहो इन्ना हु यालामुल जहरा वमा यखफ़ा वनोयस्सीरुका लिल्युसरा फज़क्किर इन नफ़ा'अतिज़्ज़िकरा सयज़्ज़क्करो मयीं यख़शा व यतजन्नबोहल अशक़ा अल्लज़ी यस्लन नारल कुबरा सुम्मा ला यमूतो फीहा वला यहया क़द अफ़लहा मन तज़क्का वज़ाकरस मा रब्बेही फसल्ला बल तुअसेरूनल हयातद दुनिया वल आखीरतु खैरुन व अबक़ा इन्ना हाज़ा लफीस्सुहुफिल ऊला सुहुफ़े इब्राहीमा वा मूसा* । इसके बाद 5 बार तकबीर ‌*अल्लाह हो अकबर * कहे और हर तकबीर के बाद हाथ उठाकर नीचे दी हुई दूआ पढे़ याद रहे 5 बार पढ़नी है ये दुआ  *अल्ला हुम्मा अहलल किब

amal e shabe 15shbaan

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 🎍💐🌹आमाले शब-ए-बारात  🌹💐🎍 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 पन्द्रहवीं शब के आमाल की फजीलत बहुत है इस शब गुस्ल करे और इस शब की बरकतों में एक यह भी है कि इस रात इमाम मोहम्मद मेंहदी अलैहिस्सलाम की विलादत हुई है  🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 💐इस रात में कुछ नमाजे और कुछ दुआए है जो हम को अदा करनी चाहिए 🌹🌹जैसे🌹🌹⤵️ 💐इन को अदा करने के दो तरीके हैं ⤵️ 💐पहला तरीका है के दो दो कर के दस रकात नमाज़ पढ़े हर रकात में सूर-ए-फातिहा यानी सुर-ए-हम्द के बाद दस बार सूर-ए-कुल-हो-वल्लाह पढ़े  💐दूसरा तरीका है के दो दो कर के चार रकात नमाज़ पढ़े हर रकात में सूर ए फातिहा यानी सुर-ए-हम्द के बाद सौ बार सुर-ए-कुल-हो-वल्लाह पढ़े                  💐इस नमाज़ की नीयत इस तरह करे ⤵️ 💐दो रकात नमाज पढता / पढ़ती हूँ ( निमे शाबान कुर - बतन इलल्लाह ) 💐और इस तरह इस नमाज़ को अदा करे फिर तस्बी-ए-फातिमा पढ़े 🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐 💐अब इस के बाद में कुछ तस्बी है जो हम को अदा करनी है ⤵️ 💐(1)💐  सुब्हानाल्लाह 💐(2) 💐अल्हम्दो लिल्लाह  💐(3) 💐अल्लाहो अकबर 💐(4) 💐ला इलाहा इल्लल्लाह 💐इमाम मुहम्मद बाक़