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अल्लाह का हकिकी राहेनुमा dastan no 30

* ﷽✨✨✨✨ *
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 * कहानी संख्या* 30
 *(अल्लाह का हकीकी राहेनुमा),
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 * ✍🏻✨एक सीरियाई शामी शहर मदीना में प्रवेश किया और उसकी निगाह इमाम हसन अलैहिस्सलाम पर पड़ी तो वह आँ हज़रत की सेवा में आया और लान, तान करना शुरू कर दिया और जो कुछ बन पड़ा उसने अपनी ज़बान से इमाम की शान  में गुस्ताख़ी कि और फिर इमाम ने मुस्कुराते हुए कहा: हे अल्लाह के बंदे, मुझे लगता है कि आप इस शहर में गरीब (यानी यात्री) हैं और शायद आपने मुझे गलत समझा है। यदि आप हमसे तलब रेजायत करोगे, तो हम आपसे प्रसन्न होंगे  और अगर आपको हमसे कुछ चाहिए, तो हम आपको देंगे।  यदि आप रहेनुमाई चाहते हैं, तो हम आपकी हेदायत करेंगे।  यदि आप चाहते हैं कि हम आपके भार को उठाने में आपकी सहायता करें, तो हम आपकी सहायता करेंगे।  यदि आप भूखे हैं, तो हम आपको सैराब कराएंगे।  यदि आपके पास कपड़ा नहीं  हैं, तो हम आपको कपड़े देंगे।  यदि आप जरूरतमंद हैं, तो हम आपकी जरूरत को पूरा करेंगे ।  यदि आपके पास रहने के लिए जगह नहीं है, तो हम आपको रहने की जगह प्रदान करेंगे।  यदि आपको कोई आवश्यकता है, तो हम इसे पूरी करेंगे। और अपने सभी बच्चों के साथ हमारे घर में प्रवेश कर सकते हो।  और जब तक आप यहां से जाने का इरादा नहीं रखते तब तक हमारे मेहमान बनें।  और हम आपकी मेहमान नवाजी को बहुत अच्छी तरह से संभाल सकते हैं। *
 * क्योंकि हमारे पास एक विशाल घर और आतिथ्य के लिए सभी सामान मौजूद हैं।  जब सीरियाई ने इमाम की बातें सुनीं, तो वह रोने लगा और कहा: * मैं गवाह हूं की तुम धरती पर अल्लाह के खलीफा हो * अल्लाह अपने रसूल को सबसे अच्छी तरह जानता है और रिसालत को रखने के लिए किस परिवार में  रखेअच्छी तरह जानता है। *
 * हे हसन, तुम और तुम्हारे आदरणीय पिता अब तक ईश्वर की रचना में मेरे सबसे बड़े शत्रु थे और अब मेरे सबसे प्रिय हैं। फिर वह आदमी इमाम के घर में दाखिल हुआ और जब तक वह मदीना में रहा, तब तक वह मेहमान के रूप में इमाम की मेहमान नवाजी को क़ुबूल करता रहा।  और वह आहलेबैत (अ,)का मोहिब हो गया। *
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  *बेहरुल अनवर जिल्द43 सफा,344
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*✨✨✨✨✨ ﷽✨✨✨✨*
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*📖✨خلیفةاللّه*
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*✍🏻✨ایک شامی  شام سے شہر مدینہ میں داخل ہوا اور اس کی نگاہ  امام حسن علیہ السلام پر پڑی تو وہ آنحضرت کی خدمت میں آیا اور لعن،طعن کرنا شروع کردیا اور جو کچھ بن پڑا اس نے اپنی زبان سے امام کی شان میں گستاخی کی اسکے بعد امام مسکرائے اور ارشاد فرمایا: اے مرد میں گمان کر رہا ہوں کہ تم اس شھر میں غریب  (یعنی مسافر) ہو اور شاید تم کو میرے سلسلے میں کوئی غلط فہمی ہوئی ہے اگر تم ہم سے طلب رضایت کروگے تو ہم تم سے راضی ہو جائیں گے۔ اور اگر ہم سے تمہیں کچھ چاہئے تو ہم تمہیں عنایت کریں گے۔ اگر رہنمائی چاہتے ہو تو ہم تمہاری ہدایت کریں گے۔ اگر ہم سے اپنا بوجھ اٹھانے کی مدد چاہتے ہو تو ہم تمہاری نصرت کریں گے۔ اگر بھوکے ہو تو سیر کر دینگے۔ اگر برہنہ ہو تو ہم تمہیں لباس عطا کریں گے۔ اگر محتاج ہو تو ہم تمہیں بے نیاز کر دیں گے۔ اگر تمہارے پاس کوئی ٹھکانہ نہیں ہے تو تمہارے لئے جائے سکونت مہیا کریں گے۔ اگر کوئی حاجت رکھتے ہو تو اسکو بر لائیں گے اور تم اپنے تمام زادراہ کے ساتھ ہمارے گھر میں داخل ہوجاو۔ اور اسوقت تک ہمارے مہمان رہو جب تک یہاں سے حرکت کرنے کا قصد نہ کرلو۔ اور ہم تمہاری مہمان نوازی بخوبی انجام دے سکتے ہیں۔*
*اسلئے کہ ہمارے پاس وسیع گھر اور تمام وسائل مہمان نوازی موجود ہیں۔ جب شامی نے امام کے کلام کو سنا تو گریہ کرنے لگا اور کہا: *اَشھَدُ اَنَّکَ خَلِیفَةُاللہِ فِی اَرضِهِ 👈🏻میں گواہی دے رہا ہوں کہ آپ روئے زمین پر اللہ کے خلیفہ ہیں۔ *اَللہُ اَعلَمُ حَیثُ یَجعَلُ رِسَالَتَهُ👈🏻اور خداوند متعال بخوبی جانتا ہے کہ اپنی رسالت کو کس خاندان میں قرار دے۔*
*اے حسن آپ اور آپ کے والد محترم ابھی تک مخلوق خدا میں میرے سب سے بڑے دشمن تھے اور اب سب سے زیادہ میرے محبوب ہیں اسکے بعد مرد امام کے گھر میں داخل ہوا اور جب تک مدینہ میں تھا آنحضرت اسکی بعنوان مہمان پذیرائی کرتے رہے اور وہ محب اہلبیت ہو گیا*
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*📚✨1۔بحار الانوار جلد 43 صفحہ 344✨*
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*📿امام_زمانہ (عج) کے ظھور  میں  تعجیل  کے لئے صلوات___ألـلَّـھُــــــمَــ ؏َـجــــــــــِّـلْ لِوَلــــــیِـڪْ ألــــــــــْـفـــــَـرَج!📿*
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